विभाजन में पाकिस्तान से हरिद्वार आए लोगों के लिए फरिश्ता बने थे वजीरचंद शर्मा , भीड़ में इंदिरा गांधी नीचे गिर पड़ी और सिक्योरिटी ने वज़ीरचंद शर्मा को चारों तरफ़ से घेर लिया !

राव शफात अली /

 भीड़ में इंदिरा गांधी  नीचे गिर पड़ी और सिक्योरिटी ने वज़ीर चंद शर्मा को चारों तरफ़ से घेर लिया… बाकी दास्तांन यहां पढ़िए !

विभाजन के वक़्त कभी पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए एक परिवार ने अपनी उस दर्द भरी दास्तान को फ़ेसबुक पर लिखा हरिद्वार के रहने वाले कुलदीप शर्मा ने अपने पिताजी की कहानी को लिखते हुए बताया कि कैसे उनके पिता ने अपनी जान को जोखिम में डालकर पंडित नेहरू का ध्यान आकर्षित किया था और किस तरह से पंडित नेहरू ने उस वक़्त सभी विस्थापितों की मदद की थी कुलदीप शर्मा अपनी फ़ेसबुक पेज पर जो लिखते हैं उसे पढ़कर विभाजन का दर्द और अपने परिवार के लिए कुछ भी कर गुज़रने का जज़्बा आपको हैरान कर देगा

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आज हमारे पूजनीय डैडी जी ,पंडित श्री वजीरचंद शर्मा जी की(29 जनवरी सन 1981) पुण्यतिथि है , हमारे पूजनीयदादा पंडित सीताराम शर्मा जी कोहाट में ड्राई फ्रूट के बड़े व्यापारी थे साथ ही वहां पर पुरोहताही का काम भी कियाकरते थे, डैडी जी का जन्म सन 1915 को अविभाजित भारत के कोहाट जिले में हुआ था। वर्तमान में जो आजपाकिस्तान में है, डैडी जी अपनी युवावस्था से ही खान अब्दुल गफ्फार जी जिसे सीमांत गांधी के नाम से भी जाना जाताहै और आजादी की लड़ाई में उनका बड़ा योगदान है जिनको मरणोपरांत भारत रत्न की उपाधि से भी नवाजा गया है,वेउनके निकटतम सहयोगी रहे हैं, आजादी की लड़ाई में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। 15 अगस्त 1947 को बंटवारे के समय अपनी पुश्तैनी हवेली और सभी नगदी जेवरात जमीन जायदाद आनंन फानन में अपने पड़ोसियों केहवाले छोड़कर तुरंत ही नवसृजित भारत में गए डैडी जी बताते थे की अफवाहों का ऐसा दौर चला कि पड़ोसी,पड़ोसी का दुश्मन हो गया। भारत में पहले फरीदाबाद दिल्ली और फिर हरिद्वार में रिफ्यूजी कैंप में कई साल रहना पड़ा,यह सब कहानी उन सभी की है जो उसे दौर में भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आए थे। सभी लोग यहीमानते थे कि यह वक्ति जुनून है, सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा और शांति कायम हो जाएगी और सभी लोगअपनेअपने घरों को वापस चले जाएंगे। परंतु नफरत की आंधी में ऐसा कुछ नहीं हुआ और केवल यादें शेष रह गई।डैडी जी बताया करते थे की जब वे में रिफ्यूजी कैंपों जो वर्तमान में रामनगर के नाम से जाना जाता है वहां तंबुओं में रहाकरते थे तो गंदगी  से इतना बुरा हाल था कि हमारी दो बड़ी बहनें बीमारी ग्रस्त होकर स्वर्ग सिधार गई। साथ ही वहांसिक्योरिटी की भी कोई व्यवस्था नहीं थी और लगभग जंगल ही था ऐसे में एक बड़े परिवार और विभिन्न विभिन्न क्षेत्र सेआए हुए शरणार्थी बेहद बुरे हाल में रह रहे थे और और किसी प्रकार का कोई कामकाज होने से बहुत ही दयनीयस्थिति सभी परिवारों की थी जिससे घर के राशन पानी आदि की भी बहुत समस्या उत्पन्न हो गई थी, एक दिन पंडितजवाहरलाल नेहरू जी का आगमन इन रिफ्यूजी कैंप में हुआ पंडित नेहरू हमारे डैडी जी को को व्यक्तिगत रूप से जानतेथे परंतु उसे समय के कलेक्टर और पुलिस अधिकारी उनको उनके समीप जाने नहीं दे रहे थे पंडित नेहरू के साथ ही उसेसमय उनकी पुत्री इंदिरा जी थी। इसी आपा धापी में डैडी जी का हाथ इंदिरा जी को लग गया और वह गिर पड़ी, जिससे एकदम सिक्योरिटी का इशू हो गया और साथ चल रहे प्रशासनिक अधिकारी डैडी जी को मारने के लिए तैयारहो गए इसी बीच पंडित नेहरू जी की दृष्टि डैडी जी के ऊपर पड़ी और उन्होंने तुरंत पहचान लिया और बोले पंडित जीक्या हुआ? जब सारे अधिकारियों ने देखा की पंडित नेहरू तो उनको जानते हैं तुरंत वे पीछे हट गए जब पंडित नेहरू कोपूरे वाक्य का पता चला तो उन्होंने डैडी जी को पास बुलाया और पूछा यह सब क्या है ? तब डैडी जी ने कहा कि आपकीलड़की को जरा सा कष्ट हुआ तो कितना कुछ हो गया परंतु हमारा परिवार हमारे लोग किन हालातो में रह रहे हैं इसकेबारे में आपको कोई चिंता नहीं है, तुरंत पंडित नेहरू जी ने डीएम को बुलाया और आदेश दिया की पंडित जी की सारीबातें समझ लीजिए और अविलंब उनको पूरा करने का काम किया जाए। डैडी जी और साथ के लोगों  ने बताया कीरिफ्यूजी कैंपों की हालत ठीक नहीं है कोई मेडिकल की सुविधा नहीं है जल भराव की निकासी की कोई साधन नहीं हैएवं शौचालय की कोई भी व्यवस्था नहीं है साथ ही जो पुरुष यहां पर हैं उनके लिए कोई भी कामकाज की व्यवस्था नहींहै जिससे वह अपना घर चला सके पंडित नेहरू के आदेश पर तुरंत कार्यवाही हुई और जितने भी पुरुष थे किसी कोसाइकिल ,किसी को सिलाई मशीन उपलब्ध कराई गई साथ ही तीन कालोनियां कृष्णा नगर ,रामनगर और श्याम नगररिफ्यूजी कॉलोनियां स्वीकृत हुई, सभी शरणार्थियों का ब्यौरा लेकर सभी को आवंटित की गई। (क्रमशः)

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