मैक्स अस्पताल में उपलब्ध ULBD सर्जिकल तकनीक, अब रीढ़ हड्डी से सम्बन्धित इलाज के लिए नहीं जाना पड़ेगा विदेश !

देहरादून / 16 अप्रैल 2025  :

देहरादून स्थित प्रतिष्ठित मैक्स अस्पताल चिकित्सा तकनीकी में लगातार उपलब्धियां हासिल कर रहा है अब ऐसे मरीज़ों के लिए एक राहत वाली ख़बर है जो रीढ़ की हड्डी से संबंधित इलाज के लिए विदेशों तक जाते हैं लेकिन अब विदेशों जैसा इलाज देहरादून स्थित मैक्स हॉस्पिटल में भी संभव हो गया है      मिनिमल इनवेसिव यूनिलेटरल लैमिनोटॉमी विथ बाइलेट्रल डीकम्प्रेशन (ULBD) एक आधुनिक सर्जिकल तकनीक है, जिसका उद्देश्य रीढ़ की हड्डी और नसों पर बने दबाव को कम करना है। यह तकनीक विशेष रूप से उन मरीजों के लिए कारगर है जो स्पाइनल स्टेनोसिस से पीड़ित हैं—यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें स्पाइनल कैनाल संकरी हो जाती है, जिससे पीठ में दर्द, सुन्नता या कमजोरी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

यह मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया आजकल लंबर स्पाइनल स्टेनोसिस, सायटिका, डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज, स्थिर लो-ग्रेड स्पॉन्डीलोलिस्थेसिस जैसे रोगों के इलाज के लिए प्राथमिक विकल्प बनती जा रही है। साथ ही, यह उन मरीजों के लिए भी उपयोगी है जिन पर फिजियोथेरेपी, दवाइयों या इंजेक्शन जैसे परंपरागत उपचारों का असर नहीं हुआ है।

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*बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली के ऑर्थो-स्पाइन सर्जरी विभाग के प्रमुख व प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉ. पुनीत गिरधर ने बताया,* “हालांकि हर मरीज ULBD के लिए उपयुक्त नहीं होता। यह तकनीक गंभीर रीढ़ की विकृतियों जैसे कि एडवांस्ड स्कोलियोसिस या गंभीर स्पाइनल स्टेनोसिस से पीड़ित मरीजों के लिए उपयुक्त नहीं होती, जिन्हें बड़े स्तर की सर्जिकल पुनर्निर्माण की आवश्यकता हो सकती है। जब सही मामलों में इसका चयन किया जाए, तो ULBD पारंपरिक स्पाइन सर्जरी की तुलना में कई लाभ देती है। इसमें छोटे चीरे लगते हैं जिससे मांसपेशियों को कम नुकसान होता है, सर्जरी के दौरान खून की कमी कम होती है, मरीज को अस्पताल में कम समय रुकना पड़ता है—अक्सर मरीज 24 घंटे के भीतर घर लौट सकते हैं—तेजी से रिकवरी होती है, संक्रमण का खतरा कम होता है और सर्जरी के बाद दर्द भी कम होता है।”

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ULBD प्रक्रिया के दौरान कई सटीक चरण होते हैं। सबसे पहले, मरीज को ऑपरेशन टेबल पर उल्टा लिटाया जाता है और जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। रीढ़ की एक तरफ करीब 2 सेंटीमीटर का एक छोटा चीरा लगाया जाता है। इस चीरे के जरिए एक ट्यूब जैसी रिट्रैक्टर डाली जाती है, जो मांसपेशियों को हल्के से अलग कर रीढ़ की ओर एक सुरक्षित मार्ग बनाती है। बेहतर दृश्यता के लिए माइक्रोस्कोप या एंडोस्कोप का उपयोग किया जाता है। इसके बाद सर्जन वर्टेब्रा की पिछली हड्डी (लैमिना) का एक छोटा हिस्सा हटाकर लैमिनोटॉमी करते हैं।

*डॉ. गिरधर ने आगे बताया,* “हालांकि लैमिनोटॉमी केवल एक तरफ की जाती है, लेकिन इससे दोनों तरफ का डी-कम्प्रेशन संभव हो जाता है, जिससे स्पाइनल कैनाल पर बने दबाव को प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है। हड्डी की कीलें, मोटे हुए लिगामेंट्स या डिस्क सामग्री जो नसों पर दबाव बना रही होती हैं, उन्हें सावधानीपूर्वक हटाया जाता है। इसके बाद रिट्रैक्टर को निकाल दिया जाता है, चीरे को टांकों या स्टेपल्स से बंद किया जाता है और उस पर स्टेराइल ड्रेसिंग लगाई जाती है।”

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मिनिमल इनवेसिव यूनिलेटरल लैमिनोटॉमी विथ बाइलेट्रल डी-कम्प्रेशन (ULBD) पारंपरिक स्पाइन सर्जरी के मुकाबले एक सुरक्षित, प्रभावी और मरीजों के लिए अनुकूल विकल्प प्रदान करता है। इसका लक्षित और कम नुकसान पहुंचाने वाला दृष्टिकोण न केवल सर्जरी के परिणामों को बेहतर बनाता है, बल्कि रिकवरी को भी आसान और तेज़ बनाता है, जिससे यह रीढ़ की देखभाल के बदलते परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण विकल्प बन गया है।

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