देहरादून 13 -2024 –
उत्तराखंड का पारंपरिक इगास पर्व 12 नवम्बर को धूमधाम से मनाया गया विंडलास सोसाइटी में भी इगास पर्व का कार्यक्रम आयोजनकिया था
जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया. पारंपरिक तौर से मनाए जाने वाले उत्तराखंड के इस पर्व को केवल पर्वतीय मूल ही नहीं बल्कि सभी मैदानी मूल के लोगों ने भी मनाया. आयोजन स्थल पर भैलो खेलने की भी विशेषव्यवस्था की गई थी
महिलाओं ने इस पर्व पर पारंपारिक परिधान पहन कर पर्वतीय संगीत पर नृत्य कर इगास का आनंद लिया इस दौरान सोसाइटी के मैदान में सभी ने एक साथ मिलकर ईगास का जश्न मनाया और आतिशबाज़ी का भी आनंद लिया
इगास को बूढ़ी दीपावली भी कहा जाता है
दरअसल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में दीपावली के 11 दिन बाद मनाई जाने वाली इगास बग्वाल का अपना खासमहत्व और सांस्कृतिक धरोहर है.
इस पर्व का उद्देश्य न केवल पुरानी परंपराओं का सम्मान करना है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को जिंदारखना भी है.
इगास बग्वाल का सांस्कृतिक महत्व
इगास बग्वाल केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक है. दीपावली के 11 दिन बाद इसपर्व को मनाने के पीछे प्राचीन मान्यता है कि गढ़वाल में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का समाचार देरी से पहुंचाथा, गढ़वालवासियों ने इस खुशी में अपनी दीपावली बाद में मनाई. इसके अलावा, वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी केनेतृत्व में तिब्बत युद्ध में विजय के बाद जब गढ़वाली सैनिक 11 दिन बाद अपने गांव लौटे, तब दीप जलाकर उत्सवमनाया गया, जो इगास का रूप बन गया.
इगास की खास परंपरा
भैलो खेल इस पर्व का मुख्य आकर्षण है. इस खेल में चीड़ की लकड़ी से बने मशाल जैसे भैलो जलाए जाते हैं और उन्हेंघुमाते हुए लोक गीतों और नृत्य का आनंद लिया जाता है. लोग “भैलो रे भैलो,” “काखड़ी को रैलू,” और “उज्यालूआलो अंधेरो भगलू” जैसे पारंपरिक गीत गाते हैं और ‘चांछड़ी’ व ‘झुमेलो’ नृत्य करते हैं. यह पर्यावरण–हितैषी उत्सवभी है
राज्य सरकार ने इगास पर्व के दिन अवकाश घोषित किया था सोसायटी सदस्यों ने देश व राज्य में सुख शांति एवंसमृद्धि की कामना की उन्होंने ईगास पर्व पर भेलो पूजन कर, भेलो भी खेला गया
कार्यक्रम के दौरान विंडलास सोसाईटी अध्यक्ष हर्षवर्धन काला , उपाध्यक्ष किशोर बौराई, विवेक थपलियाल, कृष्णाबहुगुणा, प्रियंका पटवाल, जय, विपिन रावत,नरेश कोठारी आदि
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